Tuesday, 29 December 2015

स्वामी जी के विचार



स्वामी विवेकानंद को रामकृष्ण ने भेजा काली मंदिर में

रामकृष्ण का विवेकानंद से बहुत अलग तरह का जुड़ाव था क्योंकि वह विवेकानंद को अपना संदेश दुनिया तक पहुंचाने का एक जरिया मानते थे। रामकृष्ण यह काम खुद नहीं कर सकते थे, इसलिए वह विवेकानंद को अपने संदेशवाहक के रूप में देखते थे।
रामकृष्ण के आस-पास के लोग समझ नहीं पाते थे कि वह विवेकानंद को लेकर इतने पागल क्यों थे। अगर एक भी दिन विवेकानंद उनसे मिलने नहीं आते, तो रामकृष्ण उनकी खोज में निकल जाते क्योंकि वह जानते थे कि इस लड़के में संप्रेषण की जरूरी समझ है। विवेकानंद भी रामकृष्ण परमहंस के लिए उतने ही पागल थे। उन्होंने कोई नौकरी नहीं ढूंढी, उन्होंने कोई ऐसा काम नहीं किया, जो उनकी उम्र के लोग आम तौर पर करते हैं। वह बस हर समय रामकृष्ण का अनुसरण करते थे।
विवेकानंद के जीवन में एक बहुत अद्भुत घटना घटी। एक दिन, उनकी मां बहुत बीमार थीं और मृत्युशैय्या पर थीं। अचानक विवेकानंद के दिमाग में आया कि उनके पास बिल्कुल भी पैसा नहीं है और वह अपनी मां के लिए दवा या खाना नहीं ला सकते। यह सोचकर उन्हें बहुत गुस्सा आया कि वह अपनी बीमार मां का ध्यान नहीं रख सकते। जब विवेकानंद जैसे इंसान को गुस्सा आता है, तो वह गुस्सा वाकई भयानक होता है। वह रामकृष्ण के पास गए। वह कहीं और नहीं जा सकते थे, गुस्से में भी वह यहीं जाते थे।
उन्होंने रामकृष्ण से कहा, ‘इन सारी फालतू चीजों, इस आध्यात्मिकता से मुझे क्या लाभ है। अगर मेरे पास कोई नौकरी होती और मैं अपनी उम्र के लोगों वाले काम करता तो आज मैं अपनी मां का ख्याल रख सकता था। मैं उसे भोजन दे सकता था, उसके लिए दवा ला सकता था, उसे आराम पहुंचा सकता था। इस आध्यात्मिकता से मुझे क्या फायदा हुआ?’
रामकृष्ण काली के उपासक थे। उनके घर में काली का मंदिर था। वह बोले, ‘क्या तुम्हारी मां को दवा और भोजन की जरूरत है? जो भी तुम्हें चाहिए, वह तुम मां से क्यों नहीं मांगते?’ विवेकानंद को यह सुझाव पसंद आया और वह मंदिर में गए।
एक घंटे बाद जब वह बाहर आए तो रामकृष्ण ने पूछा, ‘क्या तुमने मां से अपनी मां के लिए भोजन, पैसा और बाकी चीजें मांगीं?’
विवेकानंद ने जवाब दिया, ‘नहीं, मैं भूल गया।’ रामकृष्ण बोले, ‘फिर से अंदर जाओ और मांगो।’
विवेकानंद फिर से मंदिर में गए और और चार घंटे बाद वापस लौटे। रामकृष्ण ने उनसे पूछा, ‘क्या तुमने मां से मांगा?’ विवेकानंद बोले, ‘नहीं, मैं भूल गया।’
रामकृष्ण फिर से बोले, ‘फिर अंदर जाओ और इस बार मांगना मत भूलना।’ विवेकानंद अंदर गए और लगभग आठ घंटे बाद बाहर आए। रामकृष्ण ने फिर से उनसे पूछा, ‘क्या तुमने मां से वे चीजें मांगीं?’
विवेकानंद बोले, ‘नहीं, अब मैं नहीं मांगूंगा। मुझे मांगने की जरूरत नहीं है।’
रामकृष्ण ने जवाब दिया, ‘यह अच्छी बात है। अगर आज तुमने मंदिर में कुछ मांग लिया होता, तो यह तुम्हारे और मेरे रिश्ते का आखिरी दिन होता। मैं तुम्हारा चेहरा फिर कभी नहीं देखता क्योंकि कुछ मांगने वाला मूर्ख यह नहीं जानता कि जीवन क्या है। मांगने वाला मूर्ख जीवन के मूल सिद्धांतों को नहीं समझता।’
प्रार्थना एक तरह का गुण है। अगर आप प्रार्थनापूर्ण बन जाते हैं, अगर आप आराधनामय हो जाते हैं, तो यह होने का एक शानदार तरीका है। लेकिन यदि आप इस उम्मीद से प्रार्थना कर रहे हैं कि इसके बदले आपको कुछ मिलेगा, तो यह आपके लिए कारगर नहीं होगा।

Sunday, 27 December 2015

स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा दर्शन के आधारभूत सिद्धान्त

स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा दर्शन के आधारभूत सिद्धान्त निम्नलिखित हैं – १. शिक्षा ऐसी हो जिससे बालक का शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक विकास हो सके।
२. शिक्षा ऐसी हो जिससे बालक के चरित्र का निर्माण हो, मन का विकास हो, बुद्धि विकसित हो तथा बालक आत्मनिर्भन बने।
३. बालक एवं बालिकाओं दोनों को समान शिक्षा देनी चाहिए।
४. धार्मिक शिक्षा, पुस्तकों द्वारा न देकर आचरण एवं संस्कारों द्वारा देनी चाहिए।
५. पाठ्यक्रम में लौकिक एवं पारलौकिक दोनों प्रकार के विषयों को स्थान देना चाहिए।
६. शिक्षा, गुरू गृह में प्राप्त की जा सकती है।
७. शिक्षक एवं छात्र का सम्बन्ध अधिक से अधिक निकट का होना चाहिए।
८. सर्वसाधारण में शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार किया जान चाहिये।
९. देश की आर्थिक प्रगति के लिए तकनीकी शिक्षा की व्यवस्था की जाय।
१०. मानवीय एवं राष्ट्रीय शिक्षा परिवार से ही शुरू करनी चाहिए।

महत्त्वपूर्ण तिथियाँ

12 जनवरी 1863 -- कलकत्ता में जन्म
1879 -- प्रेसीडेंसी कॉलेज कलकत्ता में प्रवेश
1880 -- जनरल असेम्बली इंस्टीट्यूशन में प्रवेश
नवंबर 1881 -- रामकृष्ण परमहंस से प्रथम भेंट
1882-86 -- रामकृष्ण परमहंस से सम्बद्ध
1884 -- स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण; पिता का स्वर्गवास
1885 -- रामकृष्ण परमहंस की अन्तिम बीमारी
16 अगस्त 1886 -- रामकृष्ण परमहंस का निधन
1886 -- वराहनगर मठ की स्थापना
जनवरी 1887 -- वराह नगर मठ में संन्यास की औपचारिक प्रतिज्ञा
1890-93 -- परिव्राजक के रूप में भारत-भ्रमण
25 दिसम्बर 1892 -- कन्याकुमारी में
13 फ़रवरी 1893 -- प्रथम सार्वजनिक व्याख्यान सिकन्दराबाद में
31 मई 1893 -- मुम्बई से अमरीका रवाना
25 जुलाई 1893 -- वैंकूवर, कनाडा पहुँचे
30 जुलाई 1893 -- शिकागो आगमन
अगस्त 1893 -- हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रो॰ जॉन राइट से भेंट
11 सितम्बर 1893 -- विश्व धर्म सम्मेलन, शिकागो में प्रथम व्याख्यान
27 सितम्बर 1893 -- विश्व धर्म सम्मेलन, शिकागो में अन्तिम व्याख्यान
16 मई 1894 -- हार्वर्ड विश्वविद्यालय में संभाषण
नवंबर 1894 -- न्यूयॉर्क में वेदान्त समिति की स्थापना
जनवरी 1895 -- न्यूयॉर्क में धार्मिक कक्षाओं का संचालन आरम्भ
अगस्त 1895 -- पेरिस में
अक्टूबर 1895 -- लन्दन में व्याख्यान
6 दिसम्बर 1895 -- वापस न्यूयॉर्क
22-25 मार्च 1896 -- फिर लन्दन
मई-जुलाई 1896 -- हार्वर्ड विश्वविद्यालय में व्याख्यान
15 अप्रैल 1896 -- वापस लन्दन
मई-जुलाई 1896 -- लंदन में धार्मिक कक्षाएँ
28 मई 1896 -- ऑक्सफोर्ड में मैक्समूलर से भेंट
30 दिसम्बर 1896 -- नेपल्स से भारत की ओर रवाना
15 जनवरी 1897 -- कोलम्बो, श्रीलंका आगमन
जनवरी, 1897 -- रामनाथपुरम् (रामेश्वरम) में जोरदार स्वागत एवं भाषण
6-15 फ़रवरी 1897 -- मद्रास में
19 फ़रवरी 1897 -- कलकत्ता आगमन
1 मई 1897 -- रामकृष्ण मिशन की स्थापना
मई-दिसम्बर 1897 -- उत्तर भारत की यात्रा
जनवरी 1898 -- कलकत्ता वापसी
19 मार्च 1899 -- मायावती में अद्वैत आश्रम की स्थापना
20 जून 1899 -- पश्चिमी देशों की दूसरी यात्रा
31 जुलाई 1899 -- न्यूयॉर्क आगमन
22 फ़रवरी 1900 -- सैन फ्रांसिस्को में वेदान्त समिति की स्थापना
जून 1900 -- न्यूयॉर्क में अन्तिम कक्षा
26 जुलाई 1900 -- योरोप रवाना
24 अक्टूबर 1900 -- विएना, हंगरी, कुस्तुनतुनिया, ग्रीस, मिस्र आदि देशों की यात्रा
26 नवम्बर 1900 -- भारत रवाना
9 दिसम्बर 1900 -- बेलूर मठ आगमन
10 जनवरी 1901 -- मायावती की यात्रा
मार्च-मई 1901 -- पूर्वी बंगाल और असम की तीर्थयात्रा
जनवरी-फरवरी 1902 -- बोध गया और वाराणसी की यात्रा
मार्च 1902 -- बेलूर मठ में वापसी
4 जुलाई 1902 -- महासमाधि

स्वामी विवेकानंद जी के विचार