Thursday, 14 January 2016
Wednesday, 13 January 2016
तुम फुटबॉल के जरिये स्वर्ग के ज्यादा निकट होगे बजाये गीता का अध्ययन करने के।
एक बार एक युवक स्वामी विवेकानंद के पास आया और उनसे निवेदन किया कि मुझे गीता का ज्ञान करा दीजिए। स्वामी विवेकानंद ने उस युवक को परामर्श दिया कि पहले छह माह फुटबॉल खेलो और अपनी क्षमता के अनुसार गरीबों और असहायों की सहायता करो, उसके बाद मेरे पास आना, तब मैं तुम्हें गीता का ज्ञान दूंगा। युवक को बहुत आश्चर्य हुआ। आखिर गीता के ज्ञान का संबंध फुटबाल या सेवा कार्यों से कैसे है? कहीं ये मुझे टालने के लिए तो ऐसा नहीं कह रहे हैं। उसने अपनी जिज्ञासा स्वामी जी के सामने रखी, महात्मा जी, गीता एक धार्मिक ग्रंथ है, उसको सीखने के लिए फुटबाल खेलना या गरीबों की सेवा करना क्यों आवश्यक है? इस पर स्वामी जी ने उसे समझाया, सुनो युवक, गीता वीरों और त्यागियों का महाग्रंथ है। इसलिए जो वीरत्व और सेवा भाव से भरा नहीं होगा, वह गीता के गूढ़ श्लोकों और कृष्ण-अर्जुन संवाद का रहस्य नहीं समझ सकता, वास्तविक जीवन में उसका निहितार्थ नहीं समझ सकता। युवक को स्वामी जी का आशय समझ में आ गया। उसने प्रण किया कि वह गीता को समझने के लिए सुपात्र बनेगा। उसने फुटबाल और व्यायाम से अपना तन बलशाली बनाया और सेवा से जीवन को पवित्र किया। ठीक छह माह के बाद वह स्वामी जी के पास फिर से पहुंचा। तब स्वामी जी कहा कि अब तुम वास्तव में गीता को समझने के पात्र हो चुके हो। उन्होंने उस युवक को बड़े प्रेम से अपने आश्रम में ठहराया और उसे गीता का मर्म समझाया। वह युवक गीता के ज्ञान से इतना प्रभावित हुआ कि उसने गीता प्रचार मंडल की स्थापना की और उसका काव्य रूपांतरण बांग्ला भाषा में किया। युवक का नाम आचार्य सतेंद्र बनर्जी था। उन्होंने गीता के अपने गेय पदों को मनोहारी ढंग से गा-गा कर लोगों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी उठाई। उन्होंने चटगांव के निकट एक अनाथालय और विधवा आश्रम भी खोला। साथ ही अनेक स्थानों पर व्यायाम शालाएं भी। एक बार स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि मंदिर संपूर्ण जीवन के मार्ग दर्शन के केंद्र होने चाहिए। वहीं व्यायामशाला हो, वहीं पुस्तकालय भी हो और ध्यान केंद्र भी। साथ ही निर्धनों के लिए सहायता केंद्र भी हो। आचार्य सतेंद्र बनर्जी ने एक ऐसा ही मंदिर चटगांव में भी बनवाया। महामना मदन मोहन मालवीय भी कहा करते थे कि जीवन में सबसे बड़ी साधना लोक सेवा है। सिर्फ वेदों, उपनिषदों और गीता के ज्ञान को किताबी ढंग से जान लेना पर्याप्त नहीं है। उसे व्यवहार में उतारना आवश्यक है। एक बार जब महामना काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना कर रहे थे तो एक राजा ने कहा कि पंडित जी आप इस प्रकार से चंदा क्यों एकत्र कर रहे हैं। विश्वविद्यालय के लिए मैं स्वयं ही इतना धन दे सकता हूं कि आपका कार्य पूर्ण हो जाएगा। इस पर महामना ने कहा कि मैं किसी एक राजा को गौरवान्वित करना नहीं चाहता, शिक्षा का एक ऐसा मंदिर बनाना चाहता हूं जिसमें एक रिक्शा चालक भी कह सके कि इसके निर्माण में मैंने भी एक आना दान दिया है। आम आदमी और गरीब की यह मानसिकता ही इस विश्वविद्यालय की शक्ति होगी। और जो विद्यार्थी यहां से पढ़कर जाएंगे, वो मानव सेवा का पाठ लेकर ही जाएंगे। गीता ही नहीं, किसी भी धर्म ग्रंथ को पढ़ने का लाभ तभी है, जब हम उसमें सीखी हुई बातों को दूसरों के कल्याण के लिए प्रयोग कर सकें। लेकिन दूसरों के कल्याण के लिए हम तभी आगे बढ़ते हैं, जब हमारे मन में वैसी भावना होती है। इसीलिए स्वामी विवेकानंद ने गीता का पाठ पढ़ने आए युवक को पहले खेलने और सेवा करने का उपदेश दिया था।
Tuesday, 12 January 2016
भगवान मैं विश्वास
भगवान में विश्वास
स्वामी विवेकानंद का सम्पूर्ण जीवन एक दीपक के समान है जो हमेशा
अपने प्रकाश से इस संसार को जगमगाता रहेगा और उनका जीवन सदा हम लोगों के लिए एक
प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा।
एक बार स्वामी विवेकानंद ट्रेन से यात्रा कर रहे थे और हमेशा की
तरह भगवा कपडे और पगड़ी पहनी हुई थी। ट्रेन में यात्रा कर रहे एक अन्य यात्री को
उनका ये रूप बहुत अजीब लगा और वो स्वामी जी को कुछ अपशब्द कहने लगा बोला – तुम
सन्यासी बनकर घूमते रहते हो कुछ कमाते धमाते क्यों नहीं हो, तुम
लोग बहुत आलसी हो, लेकिन स्वामी जी दयावान थे उन्होंने
उसकी तरफ बिलकुल भी ध्यान नहीं दिया और हमेशा की तरह चेहरे पे तेज लिए मुस्कुराते
रहे ।
उस
समय स्वामी जी को बहुत भूख लगी हुई थी क्यूंकि उन्होंने सुबह से कुछ खाया पिया
नहीं था। स्वामी जी हमेशा दूसरों के कल्याण के बारे में सोचते थे अपने खाने का
उन्हें ध्यान ही कहाँ रहता था । एक तरफ स्वामी जी भूख से व्याकुल थे वहीँ वो दूसरा
यात्री उनको अप्शब्द और बुरा भला कहने में कोई कमी नहीं छोड़ रहा था । इसी बीच
स्टेशन आ गया और स्वामी जी और वो यात्री दोनों उतर गए। उस यात्री ने अपने बैग से
अपना खाना निकाला और खाने लगा और स्वामी जी से बोला – अगर
कुछ कमाते तो तुम भी खा रहे होते।
स्वामी
जी बिना कुछ बोले चुपचाप थकेहारे एक पेड़ के नीचे बैठ गए और बोले मैं अपने ईश्वर
पे विश्वास करता हूँ जो वो चाहेंगे वही होगा । अचानक ही कहीं से एक आदमी खाना लिए
हुए स्वामी जी के पास आया और बोला क्या आप ही स्वामी विवेकानंद हैं और इतना कहकर
को स्वामी जी के कदमों में गिर पड़ा और बोला कि मैंने एक सपना देखा था जिसमें खुद
भगवान ने मुझसे कहा कि मेरा परम भक्त विवेकानंद भूखा है तुम जल्दी जाओ और उसे भोजन
देकर आओ ।
बस इतना सुनना था कि वो यात्री जो स्वामी जी की आलोचना कर रहा था
भाग कर आया और स्वामी जी के कदमों में गिर पड़ा, बोला – महाराज
मुझे क्षमा कर दीजिये मुझसे बहुत बड़ी भूल हुई है मैंने भगवान को देखा नहीं है
लेकिन आज जो चमत्कार मैंने देखा उसने मेरे भगवान में विश्वास को बहुत ज्यादा बड़ा दिया
है। स्वामी जी ने दया भाव से व्यक्ति को उठाया और गले से लगा लिया ।
स्वामी जी के जीवन से जुडी ये सत्य घटना बहुत अधिक प्रभावित करती
है और बताती है कि किस तरह भगवान अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और पालन पोषण करते
हैं ।
Monday, 11 January 2016
स्वामी विवेकानंद जयंती एवं युवा दिवस की शुभकामनाओं के साथ समर्पित युवा देश का युवा गीत:
युवा देश की युवा शक्ति का, आओ हम गुणगान करें
नए खून पर नए जोश पर, आओ हम अभिमान करें
अपनी पर आ जांए तो, पत्थर को तरल बना देते
दुश्मन की हर साँसों को ये, पल मे गरल बना देते
और शिला पर दूब उगाना, इन तरुणों को आता है
और दहकते शोलों से भी, रास रचाना भाता है
ऐसे अपने बंधु युवा जो, उनकी हम पहचान करें
युवा देश की युवा शक्ति का, आओ हम गुणगान करें
जब जब संकट पड़ा देश पर, घोर अंधेरा छाया है
आजाद भगत या राजगुरू, जाँबाज सामने आया है
स्वागत इनको कब भाया, महलों की शहनाई का
हमने जज्बा देखा है इन, तरुणों की तरुणाई का
आओ भूलें अहम आज हम, इनको और जवान करें
युवा देश की युवा शक्ति का, आओ हम गुणगान करें
अबला का रक्षण करना हो या, अर्थ व्यवस्था बिगड़ी हो
संस्कार जब तार तार हों, भ्रष्टाचारी खिचड़ी हो
रक्षक ही जनता के भक्षक, अगर कभी हो जाते हैं
तरुणाई के तेवर ही तब, सच्ची राह दिखाते हैं
आओ ऐसे तरुणों का हम, आज यहाँ सम्मान करें
युवा देश की युवा शक्ति का, आओ हम गुणगान करें
दुश्मन जब जब सीमा पर, हमको आँख दिखाता है
और दरिन्दा घर मे घुस कर, कत्लेआम मचाता है
दर्द कई पर एक दवा है, जोश जवानी को देखो
ढाल बनी है रक्षण की उस, युवा रवानी को देखो
देश उन्हे सौंपे फिर उनको, नेह स्नेह का दान करें
युवा देश की युवा शक्ति का, आओ हम गुणगान करें
स्वामी विवेकानन्द की प्रेरणादायक लघु कथा
एक
बार स्वामी विवेकानन्द(Swami Vivekananda) के
आश्रम में एक व्यक्ति आया जो देखने में बहुत दुखी लग रहा था । वह व्यक्ति आते ही
स्वामी जी के चरणों में गिर पड़ा और बोला कि महाराज मैं अपने जीवन से बहुत दुखी
हूँ मैं अपने दैनिक जीवन में बहुत मेहनत करता हूँ , काफी लगन से भी काम करता
हूँ लेकिन कभी भी सफल नहीं हो पाया । भगवान ने मुझे ऐसा नसीब क्यों दिया है कि मैं
पढ़ा लिखा और मेहनती होते हुए भी कभी कामयाब नहीं हो पाया हूँ,धनवान(Richest) नहीं हो पाया हूँ ।
स्वामी जी उस व्यक्ति की परेशानी को पल भर में ही समझ गए । उन
दिनों स्वामी जी के पास एक छोटा सा पालतू कुत्ता था , उन्होंने
उस व्यक्ति से कहा – तुम कुछ दूर जरा मेरे
कुत्ते को सैर करा लाओ फिर मैं तुम्हारे सवाल का जवाब दूँगा ।
आदमी
ने बड़े आश्चर्य से स्वामी जी की ओर देखा और फिर कुत्ते को लेकर कुछ दूर निकल पड़ा
। काफी देर तक अच्छी खासी सैर करा कर जब वो व्यक्ति वापस स्वामी जी के पास पहुँचा
तो स्वामी जी ने देखा कि उस व्यक्ति का चेहरा अभी भी चमक रहा था जबकि कुत्ता हाँफ
रहा था और बहुत थका हुआ लग रहा था । स्वामी जी ने व्यक्ति से कहा – कि
ये कुत्ता इतना ज्यादा कैसे थक गया जबकि तुम तो अभी भी साफ सुथरे और बिना थके दिख
रहे हो तो व्यक्ति ने कहा कि मैं तो सीधा साधा अपने रास्ते पे चल रहा था लेकिन ये
कुत्ता गली के सारे कुत्तों के पीछे भाग रहा था और लड़कर फिर वापस मेरे पास आ जाता
था । हम दोनों ने एक समान रास्ता तय किया है लेकिन फिर भी इस कुत्ते ने मेरे से
कहीं ज्यादा दौड़ लगाई है इसीलिए ये थक गया है ।
स्वामी
जी(Swami Vivekananda) ने मुस्कुरा कर कहा -यही
तुम्हारे सभी प्रश्नों का जवाब है , तुम्हारी मंजिल तुम्हारे आस
पास ही है वो ज्यादा दूर नहीं है लेकिन तुम मंजिल पे जाने की बजाय दूसरे लोगों के
पीछे भागते रहते हो और अपनी मंजिल से दूर होते चले जाते हो ।
मित्रों यही बात हमारे दैनिक जीवन पर भी लागू होती है हम लोग हमेशा
दूसरों का पीछा करते रहते है कि वो डॉक्टर है तो मुझे भी डॉक्टर बनना है ,वो
इंजीनियर है तो मुझे भी इंजीनियर बनना है ,वो ज्यादा पैसे कमा रहा है
तो मुझे भी कमाना है । बस इसी सोच की वजह से हम अपने टेलेंट को कहीं खो बैठते हैं
और जीवन एक संघर्ष मात्र बनकर रह जाता है , तो मित्रों दूसरों की होड़
मत करो और अपनी मंजिल खुद बनाओ
Friday, 8 January 2016
Thursday, 7 January 2016
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